मेरा पीरियड तो बस दो दिन का आता है / I have periods of only 2 days

Shradha IVF & Maternity
Dec 12, 2025By Shradha IVF & Maternity

“मैम, मेरा पीरियड तो बस दो दिन का आता है… ये ठीक है या कोई प्रॉब्लम है?”


ऐसे मैसेज रोज़ सैकड़ों लड़कियाँ और महिलाएँ भेजती हैं।
इस ब्लॉग में हम आसान हिन्दी में समझेंगे –

  • दो दिन का पीरियड कब नॉर्मल हो सकता है
  • कब ये शरीर की किसी दिक्कत का इशारा होता है
  • और ऐसे में जाँच व इलाज क्या‑क्या होते हैं।

     

    सेक्शन 1: नॉर्मल पीरियड कैसा होता है?

    आमतौर पर पीरियड हर 24 से 35 दिन के बीच आता है और 3 से 7 दिन तक चल सकता है।​कई महिलाओं में नेचुरली खून 2–3 दिन ही आता है, पर मात्रा ठीक रहती है, साइकिल समय पर आती है और कोई ज़्यादा दर्द या दूसरी दिक्कत नहीं होती। ऐसे में यह उनका “नॉर्मल पैटर्न” हो सकता है।​
    याद रखें:
    “हर बॉडी अलग होती है। अगर हमेशा से आपका पीरियड 2–3 दिन का है और बाकी सब ठीक है, तो ज़रूरी नहीं कि यह बीमारी हो।”

 सेक्शन 2: दो दिन का पीरियड कब चिंता की बात है?

अगर निम्न में से कुछ बातें हों, तो लापरवाही न करें:

पहले 4–5 दिन तक अच्छे से पीरियड आता था, अब पिछले कुछ महीनों से सिर्फ 1–2 दिन हल्का सा स्पॉटिंग जैसा हो रहा है।
पैड या कप बहुत कम गंदा होता है, खून की मात्रा साफ़ तौर पर कम हो गई है।
साइकिल का टाइम गड़बड़ा गया है – कभी 20 दिन में, कभी 40–45 दिन में।​
साथ में ये लक्षण भी दिखें –

  • अचानक वज़न बढ़ना या बहुत कम होना
  • चेहरे पर मोटे बाल, ज़्यादा पिम्पल, बाल झड़ना
  • बहुत थकान, दिल तेज़ धड़कना, ज़्यादा ठंड या ज़्यादा गर्मी लगना
  • पेट या कमर में तेज़ दर्द, बदबू वाला डिस्चार्ज, पीरियड के बीच में बार‑बार स्पॉटिंग
    ऐसी स्थिति में यह हार्मोनल गड़बड़ी, पीसीओएस, थायराइड, या गर्भाशय (यूट्रस) से जुड़ी समस्या का संकेत हो सकता है।​

 सेक्शन 3: “सिर्फ दो दिन का पीरियड” होने के आम कारण

1. हार्मोन का असंतुलन
दिमाग (पिट्यूटरी) और अंडाशय (ओवरी) के हार्मोन मिलकर हर महीने यूट्रस की लाइनिंग को मोटा बनाते हैं।
जब यह संतुलन बिगड़ता है, तो लाइनिंग पतली रह जाती है, इसलिए खून कम और कम दिनों के लिए आता है।​

इस असंतुलन की वजह हो सकती है:

ज़्यादा तनाव
नींद की कमी
अचानक डाइटिंग या वज़न कम करना
बहुत ज़्यादा व्यायाम
कुछ दवाइयाँ

2. पीसीओएस (Polycystic Ovary Syndrome)
इसमें अंडाशय सही समय पर अंडा नहीं छोड़ पाते, जिससे पीरियड या तो देर से आता है या बहुत हल्का और कम दिन का होता है।​
साथ में वज़न बढ़ना, चेहरे‑ठोड़ी पर मोटे बाल, पिम्पल और प्रेग्नेंसी में दिक्कत आम लक्षण हैं।​

3. थायराइड की समस्या
थायराइड हार्मोन कम या ज़्यादा होने से पूरा हार्मोन सिस्टम बिगड़ जाता है।
इससे पीरियड कभी बंद, कभी देर से, तो कभी बहुत हल्का और छोटा हो सकता है।​

4. तनाव, गलत डाइट, ज़्यादा एक्सरसाइज़
बहुत ज़्यादा स्ट्रेस या टेंशन में शरीर “सेविंग मोड” में चला जाता है।
शरीर को लगता है कि अभी प्रेग्नेंसी के लिए सही समय नहीं है, इसलिए ओव्यूलेशन और पीरियड पर असर पड़ता है, और खून कम आने लगता है।​

5. गर्भनिरोधक गोलियाँ या हार्मोनल उपकरण
कई तरह की पिल्स, इंजेक्शन या हार्मोनल कॉपर‑टी / IUD जान‑बूझकर यूट्रस की लाइनिंग को पतला रखते हैं।
इस वजह से पीरियड बहुत हल्का या 1–2 दिन का हो सकता है – यह साइड‑इफेक्ट कम और “इफेक्ट” ज़्यादा माना जाता है।​

6. यूट्रस के अंदर चिपकने (Asherman syndrome)
बार‑बार D&C, गर्भपात, टीबी यूट्रस या बड़ी यूट्रिन सर्जरी के बाद गर्भाशय के अंदर स्कार बन सकता है।
ये चिपकने लाइनिंग को बढ़ने नहीं देते, इसलिए पीरियड बहुत कम या लगभग गायब हो सकता है और कभी‑कभी प्रेग्नेंसी नहीं ठहरती।​

7. उम्र और पेरिमेनोपॉज़
35–40 साल के बाद कई महिलाओं में हार्मोन ऊपर‑नीचे होने से पीरियड कभी कम, कभी ज़्यादा दिन का हो जाता है।
अगर फैमिली कम्प्लीट है और बाकी रिपोर्ट ठीक हैं, तो यह ज़्यादातर नेचुरल बदलाव होता है।​
 

सेक्शन 4: डॉक्टर कौन‑सी जाँच कर सकता है?

अगर आप “सिर्फ दो दिन का पीरियड” लेकर गाइनीकॉलजिस्ट के पास जाएँगी, तो आम तौर पर ये स्टेप होते हैं:

पूरी हिस्ट्री: उम्र, शादी, प्रेग्नेंसी प्लान, पहले पीरियड कैसा था, कब से बदला, कितनी मात्रा में खून आता है, दर्द, वज़न, तनाव, कोई पुरानी बीमारी या ऑपरेशन इत्यादि।​
शारीरिक जांच: वज़न, बीएमआई, थायराइड की सूजन, चेहरे पर बाल या मुहांसे, स्तन से दूध जैसा डिस्चार्ज आदि।​

ब्लड टेस्ट:

  • हीमोग्लोबिन (खून की कमी)
  • थायराइड प्रोफाइल
  • शुगर, ज़रूरत हो तो इंसुलिन
  • हार्मोन – FSH, LH, प्रोलैक्टिन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन (जैसा डॉक्टर उचित समझे)​
  • प्रेग्नेंसी टेस्ट: अगर प्रेग्नेंसी की संभावना हो, तो सबसे पहले इसे कन्फर्म/रूल‑आउट किया जाता है।​
  • अल्ट्रासाउंड: यूट्रस और ओवरी का साइज, पीसीओएस के निशान, फाइब्रॉइड, सिस्ट और एंडोमेट्रियल थिकनेस देखने के लिए।​
  • हिस्टेरोस्कोपी / HSG: अगर अंदर चिपकने का शक हो, तो छोटी कैमरा वाली प्रक्रिया से यूट्रस के भीतर सीधे देखा जा सकता है।​

 सेक्शन 5: इलाज – क्या‑क्या संभव है?


इलाज हमेशा रिपोर्ट और कारण पर निर्भर होता है, इसलिए खुद से दवा शुरू करना सही नहीं है।​

1. लाइफ़स्टाइल में सुधार
रोज़ 30–40 मिनट तेज़ चाल से चलना या हल्का एक्सरसाइज़।
क्रैश डाइट, घंटों जिम, अचानक बहुत वज़न कम करना – इनसे बचें।
संतुलित खाना: हरी सब्ज़ियाँ, फल, दाल, पनीर/अंडा/चिकन, अंकुरित अनाज, गुड़, चुकंदर आदि जिससे आयरन और विटामिन पूरे रहें।​
7–8 घंटे की पूरी नींद, मोबाइल‑स्क्रीन कम, स्ट्रेस कम करने के लिए योग या मेडिटेशन।​

2. हार्मोनल दवाइयाँ
गाइनीकॉलजिस्ट ज़रूरत के हिसाब से कॉम्बिनेशन पिल या सिर्फ प्रोजेस्टेरोन दे सकता/सकती हैं, जिससे साइकिल रेगुलर हो और लाइनिंग ठीक से बने।​
ये दवाइयाँ हमेशा डॉक्टर की सलाह से ही लेनी चाहिए, क्योंकि हर मरीज की मेडिकल हिस्ट्री अलग होती है।

3. पीसीओएस और थायराइड का ट्रीटमेंट
पीसीओएस में वज़न नियंत्रित करना, सही डाइट और कभी‑कभी इंसुलिन पर असर करने वाली दवाइयाँ दी जाती हैं; प्रेग्नेंसी चाहने पर ओव्यूलेशन बढ़ाने वाली दवाइयाँ भी दी जा सकती हैं।​
थायराइड की बीमारी में नियमित थायराइड मेडिसिन लेने से कुछ महीनों में पीरियड पैटर्न साधारण हो सकता है।​

4. यूट्रस के अंदर चिपकने का इलाज
हिस्टेरोस्कोपी से चिपकनें (adhesions) को काटकर हटाया जाता है, ताकि लाइनिंग दुबारा सामान्य बन सके।
बाद में कुछ समय के लिए हार्मोनल सपोर्ट दिया जाता है, जिससे एंडोमेट्रियम अच्छी तरह बढ़े और भविष्य में प्रेग्नेंसी के चांस सुधरें।​

5. पेरिमेनोपॉज़ में मैनेजमेंट
अगर उम्र ज़्यादा है, परिवार पूरा हो चुका है और सिर्फ पीरियड कम दिन का हो रहा है, तो कई बार सिर्फ काउंसलिंग और हल्की दवाओं से काम चल जाता है।
ज़्यादा ब्लीडिंग, एनीमिया, या दूसरी समस्या हो तो डॉक्टर अलग से प्लान बनाते हैं।​
 

सेक्शन 6: कब तुरंत डॉक्टर से मिलें?


पीरियड पैटर्न पिछले 3 महीने या उससे ज़्यादा समय से बदल गया हो और लगातार बहुत कम दिन का आ रहा हो।
आप प्रेग्नेंसी प्लान कर रही हों, लेकिन पीरियड बहुत अनियमित या बहुत हल्का हो।
साथ में तेज़ दर्द, बदबू वाला डिस्चार्ज, बुखार, असामान्य बाल, चेहरे पर बहुत पिम्पल, अचानक वज़न बदलना या स्तन से दूध जैसा रिसाव हो।​
पहले कभी गर्भपात, D&C, टीबी या यूट्रस की बड़ी सर्जरी हो चुकी हो।
इन संकेतों को इग्नोर न करें। जितना जल्दी जांच होगी, उतना आसान और बेहतर इलाज मिलेगा और आपकी फर्टिलिटी व हेल्थ दोनों सुरक्षित रहेंगी।​

 
यदि चाहें तो अंत में आप अपनी क्लिनिक का कॉल‑टू‑एक्शन जोड़ सकती हैं, जैसे:

“अगर आपका पीरियड भी सिर्फ 1–2 दिन का आता है और आप कन्फ्यूज़ हैं कि यह नॉर्मल है या नहीं, तो हमारे क्लिनिक पर एक बार पूरी जांच ज़रूर कराएँ।”